
शादी और बच्चे पैदा करने को लड़कियों के जीवन का अंतिम लक्ष्य न माना जाए
बेटियों की प्रति हमारा नजरिया कितना भी विकसित क्यों न हो गया हो लेकिन उनकी शादी को लेकर आज भी वही नजरिया है.जितनी जल्दी लड़कियों की शादी कर दो उतना ही अच्छा है.अक्सर हमने मां-बाप को और खास तौर पर मां को यह कहते सुना होगा ,"हम लोग तो बड़े परेशान हैं हमारी लड़की के लिए तो कोई अच्छा लड़का ही नहीं मिल रहा.लड़की की शादी हो जाए एक समस्या हल हो जाए."
सवाल ये हैं की क्या सिर्फ शादी करने से समस्या हल हो जाएगी? बल्कि यह कहें की हम स्वयं छुटकारा पाकर अपनी बेटी को कमान थमा देते हैं एक ऐसी कमान जो उसे तमाम बंधनों में बंधकर भी थामे रखनी पड़ती है.आपने अपनी बेटी के लिए अच्छा परिवार देखा और यह सोचकर शादी कर दी की हमारी लड़की इस घर में खुश रहेगी.और जब शादी के बाद लड़की के घर वालों और दामाद का बदला रूप हमने देखा तब हम परेशान हो गए.
पर अब परेशानी पहले वाली समस्या से ज्यादा गंभीर हो गई और खास बात ये है कि अब इसमें मां-बाप के साथ साथ बेटी भी शामिल हो गई.इस तरह समस्या और भी गंभीर हो गई.तो सिर्फ बेटी की शादी कर देना ही समस्या का हल नहीं है बल्कि कई बार ऐसा करके आप अपनी समस्या में शामिल होने के लिए एक तीसरे शख्स को भी शामिल कर लेते हैं.
शादी से पहले जो दामाद जी खूब पैर छूते थे और जो सासू मां अपनी होने वाली बहू का रोज हाल चाल लेती थीं वो .अब बीमार होने पर भी बहू का हाल चाल नहीं लेती. जिन पति को शादी से पहले पत्नी में सभी गुण नजर आते थे उन्हें अब कमियां ही नजर आने लगी.कुल मिलाकर के सबके रूप बदल गए.
जरूरी है कि लड़कियों की पढ़ाई लिखाई पर जोर दिया जाए.शादी और बच्चे पैदा करने को लड़कियों के जीवन का अंतिम लक्ष्य न माना जाए और कोशिश की जाए की वो अपने पैरों पर खड़ी हों.उसके बाद शादी और विवाह के बारे में सोचा जाए.वैसे अगर लड़की अपने पैरों पर खड़ी हो जाए तो शायद मां बाप को बेटी की शादी के लिए इतनी चिंता न करनी पड़े.
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