
शादी में फूफा के अलावा और भी लोग है जो हर बात पर मुँह बनाते रहते है
नया साल है मित्रों तो बहुत सारे कुंवारे इस साल शादी करने की सोच रहे होंगे. न्यू ईयर पर इन लोगों का कथित रिजोल्यूशन यही होगा. शादी का यह ख्वाब बुरा नहीं है. सबको देखना चाहिए. हालांकि शादी के बाद के लिए मित्रों में पत्नी को लेकर तमाम चुटकुले हैं लेकिन शादी की प्रोसेस का दर्द लोग कम साझा करते हैं. सारा फ्रस्टेशन पत्नी के ऊपर ही निकाला जाता है. भारतीय समाज में शादी अगर बगैर किसी की नाराजगी के पूरी हो जाए तो शायद अधूरी है. कहा जाता है कि मिडिल क्लास ही समाज का असली चेहरा होता है इसलिए इस समाज की शादियां बगैर रुठने मनाने के पूरी नहीं होतीं. कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत बनने वाली सरकार की तरह इन शादियों में भी कोई न कोई किरदार नाराज हो ही जाता है. सास बहू की नाराजगी और झगडों के किस्सों से पहले अपने आप में परिवारों में एक मेलोड्रामा होता है. इस ड्रामे का हल शायद ही आज तक कोई ढूंढ पाया हो.
शादी बारात के ड्रामे में पहले तल्खी की शुरुआत निमंत्रण से ही हो जाती है. शादी का कार्ड देने भर की खबर में ही कई एंगल निकाले जा सकते हैं. मसलन
'कार्ड पोस्ट से क्यों भेजा गया. खुद देने क्यों नहीं आए'
'कार्ड किसी दूसरे रिश्तेदार या घर के सबसे छोटे बेटे के हाथ से क्यों भेजा गया'
'कार्ड तो भेज दिया लेकिन एक फोन तक नहीं किया'
'बस फोन कर दिया, कार्ड तक नहीं भेजा'
आम तौर हर एक रिश्तेदार इनमें से कोई एक एंगल निकाल लेता है और नाराज हो जाता है लेकिन 'खून के रिश्ते' की खातिर वो शादी में आता है. वो इतना बड़ा त्याग करके शादी में आते हैं लेकिन ये क्या घर के मालिक उनसे बस 2 मिनट के लिए मिलते हैं और निकल जाते हैं. घर के मालिक के पास इतना भी वक्त नहीं है कि वो जरा देर खड़ा होकर ढंग से स्वागत कर ले ! आम तौर पर घरों में ससुराल और मायके के दो पक्ष होते हैं. दोनों एक दूसरे को लगभग कांग्रेस और बीजेपी की नजर से देखते हैं. ऐसे में गुस्से की आग में घी का काम कथित विरोधी पक्ष के रिश्तेदार के साथ घर के मालिक का खड़ा होना कर देता है. और कहीं अगर बातचीत हंस हंसकर हो गई तब तो समझो तिल तिलकर जलने वाली हालत हो जाती है.
स्वागत से बात घर के अंदर प्रवेश करने तक पहुंची. बात आ गई कमरे पर. कौन से कमरे में कौन रुकेगा या दूसरे शब्दों में कहें तो किस गुट की गतिविधियों का हेडक्वार्टर बनेगा. इसमें भी कमरे के साइज, पंखा या कूलर को लेकर मामला गंभीर हो सकता है. सवाल उठता है-
'ऐसी गर्मी में उनके कमरे में तो कूलर लगा था, हमें धीमे धीमे चलते पंखे में भरी गर्मी में सूखने के लिए छोड़ दिया गया'
कई बार इतने कमरे भी नहीं होते तो एक ही कमरा भी शेयर करना होता है (वाकई काफी सीधे रिश्तेदार होते हैं हमारे). ऐसे में पंखे या कूलर के एंगल को लेकर सवाल खड़ा हो सकता है-
'अपने सबकी तरफ पंखा घूमा लिया गया. बाकी गर्मी में जो सड़ता रहे वो सड़ें.'
आम तौर पर ऐसे मुद्दे फुसफुसाहट के जरिए संचारित होते रहते हैं. जिसके घर में शादी होती है वो इतना व्यस्त होता है कि फुसफुसाहट उसके कानों तक नहीं पहुंचती. ऐसे में घर के लोगों तक बात पहुंचाने के लिए कई बार तानों का सहारा लिया जाता है. जैसे-
'बड़ी गर्मी है भाई'
'पंखा में से हवा ही नहीं आ रही है'
काम के बोझ में दबे घर वालों की हालत मनमोहन सिंह जैसी हो जाती है. वो बेचारे चुप्पी साध जाते हैं. कई बार कुछ कोशिश भी करते हैं फिर मन ही मन गाली देते हुए फरार हो जाते हैं.
खैर शादी के इस माहौल में कमरे जैसी तुच्छ बातों से ऊपर उठते हैं और भारतीय टीवी सीरीजों की तरह थो़ड़ा लीप लेते हैं. दरअसल भारतीय समाज में शादी एक अग्निपथ की तरह है. हर कदम पर किसी के नाराज होने का भय बना रहता है. ऐसे में हम चलते हैं शादी के स्टेज पर. जयमाला हो चुकी है. फोटो सेशन की बारी आती है. सभी फोटो खिंचवाने को आतुर रहते हैं. अब यहां पर सवाल उठते हैं-
'हमें स्टेज पर बुलाया नहीं गया, हम नहीं जाएंगे'
'हमें स्टेज पर दूल्हा दुल्हन के साथ अकेले फोटो नहीं खिंचवाने दी गई'
'अपने घर वालों की एक साथ फोटो नहीं हो पाई'
'अपने सबकी की तो 50 फोटो करवा लीं, हमारी एक में ही चलो चलो कर दिया'
खैर जयमाल का कार्यक्रम निपटा तो बात आई रात भर में होने वाले शादी के असली पूजा पाठ की. रात भर चलने वाले इस कार्यक्रम में बहुत ही कम लोग नजर आते हैं. अधिकतर सो चुके होते हैं. घर वालों के अतिरिक्त वो कन्याएं नजर आती हैं जिनके मन में शादी के ख्वाब पल रहे होते हैं.
रात के शादी के कार्यक्रम के बाद सुबह कलेवा का कार्यक्रम आता है. इसे हमें दूल्हे पक्ष और दुल्हन पक्ष में बांटकर देखना होगा. इस कार्यक्रम के मौके पर दुल्हे पक्ष में बैठने वालों की संख्या काफी होती है. मतलब ऐसी इच्छा रखने वालों की संख्या बहुत ज्यादा होती है. फिर भी कुछ को ही मौका मिलता है. जिनको नहीं मिलता वो नाक-भौं सिकोड़र गाली देते हुए नाश्ता चापते रहते हैं. ऐसे लोग अपने घर में जल्द शादी होने की इच्छा रखते हैं ताकि वो अपना बदला पूरा कर सकें. दुल्हन पक्ष की ओर कलेवा करने के लिए कम लोग तैयार होते हैं. कलेवा में दोनों पक्षों की संख्या का मामला दरअसल 'लेन देन' से जुड़ा होता है. यहां पर दुल्हन पक्ष के घर वाले अक्सर अपने रिश्तेदारों से नाराज हो जाते हैं कि उन्होंने दूल्हा कलेवा क्यों नहीं की.
इसके बाद विदाई की बेला आती है. विदाई में तो कई बार दूल्हन ही टारगेट पर आ जाती है. विदाई के वक्त में कुछ ऐसे सवाल खड़े होते हैं-
'बड़ी नालायक थी, हमसे गले नहीं मिली'
'हमें देखा लेकिन गले दूसरे के मिल गई जाकर'
'वो अपने ननिहाल की ज्यादा चहेती थी, उन्हीं से मिली बस'
खैर भावनाओं के इस ज्वार के बीच दुल्हन विदा हो जाती है. अब वक्त रिश्तेदारों की विदाई का है. कुछ को साड़ी- कपड़े, नेग(रुपये) और व्यवहार की मिठाई के साथ विदा किया जाना है. साड़ी वाला हर उम्मीदवार अपने से ज्यादा दूसरे उम्मीदवार की साड़ी देखता है. फुसफुसाहट की शुरुआत तो यहीं से हो जाती है. लिफाफे के चलन ने लोगों का पैसों के मामले में धर्म संकट फिर भी कम कर दिया है. इतनी लाज शरम फिर भी बची है कि बस पूछ एक दूसरे से 'तुम्हें कितना मिला' ये पूछ नहीं लेते. व्यवहार की मिठाई का भी हिसाब कुछ ऐसा ही है. इस लेन देने के पूरे कार्यक्रम के कुछ सवाल इस तरह हैं.
'उनकी साड़ी अच्छी थी, हमने देखी थी. महंगी लग रही थी.'
'हमें एक ही डिब्बा मिठाई मिला, अपने सबको भर भर के दिया गया'
'सब बेकार बेकार मिठाई भर दी गई'
इन तमाम सवालों के बीच विवाह का कार्य समाप्त होता है. इसके बाद इधर-उधर की तमाम बातें छनकर आती हैं. थोड़ा कूल मामला ये है कि कई बार लोग सीधे नहीं कहते. अगर नाराजगी ज्यादा है जैसे संसद में अमित शाह विपक्ष पर बरसते हैं, वैसी ही बरसात का सामना करना पड़ सकता है. और हां नाराजगी बस इतनी ही नहीं है. शादी वाले घर के हर एक सदस्य का एक अलग एंगल है. बाथरूम से दुल्हा- दुल्हन के कमरे तक से शिकायत हो सकती है. सच ये है कि इस लेख में शादी के दौरान उपजी नाराजगी का अपमान हुआ है और उसे पर्याप्त जगह नहीं दी गई है. शायद इसके लिए एक पूरी किताब पूरी लिखनी पड़े....
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