
भारी मतदान के बाद भी बीजेपी का हारना पारंपरिक वोट बैंक में सेंध के कारण!
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं.सभी जगह केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी को करारा झटका लगा है.महागठबंधन बनाने को तैयार बैठे विपक्ष के सामने बीजेपी के आगे ये नतीजे करारा झटका हैं.पांच राज्यों में से राजस्थान,एमपी और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की बहुमत की सरकारें थीं और 2014 लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में बीजेपी ने धमाकेदार प्रदर्शन किया था.
इन राज्यों में चुनाव नतीजों के बाद कई अलग अलग तस्वीरें सामने आ रही हैं.जिनमें से कुछ बीजेपी के खिलाफ हैं तो कुछ बीजेपी में भी सत्ता पर हावी मोदी गुट के खिलाफ भी हैं.हाल के सालों में चुनावों में एक सेट ट्रेंड देखने को मिला था.जहां वोटिंग ज्यादा होती थी वहां बीजेपी आसानी से चुनाव जीत लेती थी.बीते दिनों राजस्थान के बारे में तो साफ तौर पर कहा गया की वोटिंग ज्यादा तो बीजेपी अन्यथा कांग्रेस.बीते सालों में बिहार में विधानसभा चुनावों में हार बीजेपी की हार सबसे बड़ी हार थी और यहां भी कम वोटिंग हुई थी.अमित शाह के प्रभारी रहते हुए जब बीजेपी ने यूपी में लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की तो उनके माइक्रो मैनेजमेंट की खासी चर्चा हुई.कहा जाता है की अमित शाह ने हर बूथ को मजबूत करने पर जोर दिए ताकि चुनाव में अपने मतदाता को वोट डालने के लिए घर से निकालकर पोलिंग बूथ तक लाया जा सके.शाह के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद बीजेपी ने अपनी इस नीति को और मजबूत किया और त्रिपुरा,असम और जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों में बड़ी जीत हासिल कीं.
अब जबकि ताजा विधानसभा चुनावों के नतीजे आएं हैं तो बीजेपी की इस रणनीति को झटका लगा है.ये झटका इसलिए है क्योंकि इस बार चुनाव में हर राज्य में भयंकर मतदान हुआ है.मतदान के नए रिकॉर्ड सेट हुए हैं.मतदान के बाद तो कुछ चुनावी विश्लेषकों ने बीजेपी की जीत की संभावना भी जताई थी,लेकिन चुनाव परिणामों ने कुछ अलग ही तस्वीर दिखाई है.बीजेपी के लिए चिंता की बात इसलिए है क्योंकि पहले उसके नाराज वोटर वोट डालने निकलते नहीं थे अब वो नाराज होकर बाहर भी आ रहे हैं और खिलाफ वोट भी कर रहे हैं.छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में बीजेपी का सफाया हो गया जबकि यहां नक्सल इलाकों से लेकर पूरे प्रदेश में भयंकर मतदान हुआ था.अगले साल अप्रैल में लोकसभा चुनाव होने हैं और संसद में काम के लिए बीजेपी के पास संसद का शीतकालीन सत्र बचा हुआ है.इन चुनाव परिणामों के बाद विपक्ष के साथ सहयोगी भी हावी होने की कोशिश करेंगे.ऐसे में बीजेपी के पास अपने वोटरों की नाराजगी दूर करने के लिए समय नहीं है.2014 में चुनाव के समय मोदी के पास गुजरात मॉडल था,10 साल की कांग्रेस सरकार की असफलताएं थी.ऐसे में 2019 के चुनाव में वोटरों की नाराजगी दूर करने के लिए अपने तरकश से कौन सा तीर निकालते हैं ये देखने वाली बात होगी.
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